झीनी
झीनी
झीनी रे झीनी रे झीनी चदरिया
झीनी रे झीनी रे झीनी
के राम नाम रस भीनी चदरिया
झीनी रे झीनी रे बीनी
अष्ठ कमल दल चरखा डोले
पाँच तत्व गुण तीनी
सांई को सियत मास दस लागे
ठोंक ठोंक के बीनी
सौ चादर सुर नर मुनी ओढ़ी
ओढ़ी के मैली कीनी चदरिया
दास कबीर जतन सो ओढ़ी (दास कबीर ने ऐसी ओढ़ी)
ज्यों की त्यों धर दीनी....................
Courtesy: Indian Ocean
Abstract:
this fine cloth of life, woven with great care by the master, yet we humans make this cloth dirty & torn, leave the cloth unspoiled, a poem by kabir, the great saint-poet of the 15th century.
झीनी रे झीनी रे झीनी चदरिया
झीनी रे झीनी रे झीनी
के राम नाम रस भीनी चदरिया
झीनी रे झीनी रे बीनी
अष्ठ कमल दल चरखा डोले
पाँच तत्व गुण तीनी
सांई को सियत मास दस लागे
ठोंक ठोंक के बीनी
सौ चादर सुर नर मुनी ओढ़ी
ओढ़ी के मैली कीनी चदरिया
दास कबीर जतन सो ओढ़ी (दास कबीर ने ऐसी ओढ़ी)
ज्यों की त्यों धर दीनी....................
Courtesy: Indian Ocean
Abstract:
this fine cloth of life, woven with great care by the master, yet we humans make this cloth dirty & torn, leave the cloth unspoiled, a poem by kabir, the great saint-poet of the 15th century.