Hindi Bhashi

मंगलवार, सितंबर 28, 2004

झीनी

झीनी
झीनी रे झीनी रे झीनी चदरिया
झीनी रे झीनी रे झीनी
के राम नाम रस भीनी चदरिया
झीनी रे झीनी रे बीनी
अष्ठ कमल दल चरखा डोले
पाँच तत्व गुण तीनी
सांई को सियत मास दस लागे
ठोंक ठोंक के बीनी
सौ चादर सुर नर मुनी ओढ़ी
ओढ़ी के मैली कीनी चदरिया
दास कबीर जतन सो ओढ़ी (दास कबीर ने ऐसी ओढ़ी)
ज्यों की त्यों धर दीनी....................
Courtesy: Indian Ocean

Abstract:
this fine cloth of life, woven with great care by the master, yet we humans make this cloth dirty & torn, leave the cloth unspoiled, a poem by kabir, the great saint-poet of the 15th century.

मंगलवार, अगस्त 31, 2004

पहला बलाग

It takes awful lot time, so shall complete soon........

जय हिन्द
अमित